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  1. हिन्दू राष्ट्रवाद का दर्शन तो सबसे पहले गोवलकर और वीर सावरकर ने दिया है जो कि आजादी से पहले की बात है उन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद के दर्शन के अन्तर्गत धार्मिक और सांस्कृतिक रीति- रिवाज,परंपरा को अपनाने की बात की है उनका कहना है कि भारत के अंदर तो सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग ज्यादा रहते हैं और सांसRead more

    हिन्दू राष्ट्रवाद का दर्शन तो सबसे पहले गोवलकर और वीर सावरकर ने दिया है जो कि आजादी से पहले की बात है उन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद के दर्शन के अन्तर्गत धार्मिक और सांस्कृतिक रीति- रिवाज,परंपरा को अपनाने की बात की है उनका कहना है कि भारत के अंदर तो सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म के लोग ज्यादा रहते हैं और सांस्कृतिक तौर पर एक बद्ध हैं यदि भारत हिन्दू राष्ट्रवाद की मान्यता को अपना भी लेता तो ऐसा भी नहीं है कि अन्य धर्मों को मानने वाले भी हिन्दू राष्ट्रवादी हिन्दुस्तान में रह सकते हैं लेकिन उन्हें सांस्कृतिक मान्यताओं को भारत के साथ अपनाना पडे़गा जबकि धार्मिक मान्यताओं को अपनी मानते रहें क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता है तो दूसरी मान्यताओं वाले लोग रहेंगे तो लेकिन एक राष्ट्र के रूप में समर्पित नहीं होते हैं ये तो रहे आजादी के पहले के विचार, जो कि 1947 में भारत के स्वतंत्र राष्ट्र राज्य बनने के बाद हिन्दू राष्ट्रवाद की मान्यता नहीं स्वीकार किया गया है हमने संविधान का निर्माण किया और संविधान में स्वीकार भी किया और तय किये लक्ष्यों और नागरिकों के जीवन को उन्नत करने का मार्ग चुना है संविधान तो धर्मनिरपेक्षता और पंथनिरपेक्षता की गारंटी भी सुनिश्चित करता है तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहिए जबकि संविधान में अल्पसंख्यकों को अलग से विशेषता भी दी गई है भारत में 2014 से हिन्दूत्व के साथ soft corner रखने वाली BJP की सरकार आने के बाद भी तो अन्य समुदायों के त्योहार या पहले जैसी प्रदत्त सुविधाएं वैसे ही है जैसे पहले थे इसके पहले जब congress थी और state की राज्यीय राजनीति में विभिन्न पार्टियों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय का लामबंदी की जाती थी और उन्हें व्यवहारिक फायदा दिया गया तब भी कोई दिक्कत नहीं था आज भी नहीं है
    वर्तमान समय में विश्व में हिन्दू राष्ट्रवाद के रूप में भारत की गलत छवि प्रस्तुत की जा रही है ऐसा कार्य करने में भारत के अंदर ही कार्य इस्लामिक चरमपंथी ग्रुप और कम्युनिस्ट सोच वाले एकेडमिक जैसे शिक्षा जगत और मीडिया समूह और राजनीतिक पार्टी कर रही हैं और सन् 2000 के बाद भारत की बढ़ती अन्तर्राष्ट्रीय भौगोलिक राजनीति और मजबूत उपभोक्ता बाजार, बढ़ते सेवा क्षेत्र के कारण भारत का प्रभुत्व विश्व में स्थापित हो रहा है जिसके कारण वैश्विक मीडिया प्रोपेगेंडा का प्रचार करके भारत की गलत छवि बनाने की कोशिश है वैश्विक मीडिया का खेल विकसित देशों के साथ आर्थिक और राजनीति है|

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