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तुम्हारे नाम

तुम्हारे नाम
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प्रेम उस पसंदीदा किताब की तरह है जिसे अभी तक आपने पढ़ा ना हो पर हमेशा कल्पना की हो कि जब वो किताब मिल जाएगी तो कितनी संतुष्टि होगी, कितनी खुशी होगी, और बस कल्पना मात्र से रोमांचित हो जाते हो की जिस किताब के बारे मे आपने इतना सुन रखा हो वो क्या सच मे इतनी अच्छी होगी, क्या वो आपके द्वारा निर्धारित कसौटी पर खरी उतरेगी भी या बस एक अफवाह भर रह जाएगी। ये वो किताब है, जिसके बारे मे ये सोचने मात्र से मन कड़वा हो जाए कि क्या हो अगर मुझे ये पसंद ही ना आए और बजाय इसके की इस किताब मे ही कुछ दोष होगा आप अपनी राय पर शक करते है, अगर इतनी पवित्रता आ जाए किसी किताब के लिए तो समझिए की आप अब प्रेम पीड़ा से प्रताड़ित है और अब इस किताब को पढ़ना ही है, एकमात्र आपका इलाज।

जरा सोचिए, जिस पसंदीदा किताब के लिए इतनी आसक्ति हो वो आपको मिल ही जाए एक दिन, फिर तो पढ़ने वाले को यकीन ही नहीं होता की इतनी आसानी से कैसे मिल गई ये , ये तो सभी को चाहिए थी, क्या सभी पढ़ना नहीं चाहते थे इसे? तो फिर कैसे ये बची रह गई सिर्फ मेरे लिए। उस दिन आपको किस्मत पर यकीन आ जाता है, आप ईश्वर के आभारी हो जाते है और अपने मन पर जिसने अब तक इतनी दुर्लभ सुख की चाह ना छोड़ा हो, को शाबाशी देने का मन करता है। इस किताब के रूबरू होना तो और भी अलग बात है, मगर इतना तो बड़ी ईमानदारी के साथ कहा जा सकता है की इसे पढ़ने से ज्यादा, पढ़ने का इंतजार मोहक होता है। इस अप्रतिम किताब के हाथों मे आने पर आप भूल जाते है पड़ोस का वो कोलाहल जिसे रात-दिन कोसते आए हो और घर का कोई वीरान कोना आपका हमसफर बन जाता है। इस किताब के साथ एकांत खलता नहीं है अब और ना हीं अपनी पुरानी दिनचर्या याद रहती है।

गौर फरमाने वाली बात ये है की इस किताब का इसे पढ़ने में आने वाली अड़चनों से गहरा संबंध हैं जैसे ही ये आपके सामने होगी और लगेगा की बस पढ़ना शुरू करना चाहिए वैसे ही शुरू होंगे व्यवधानों का सिलसिला, कभी रसोई से आती कुकर की सीटी तो कभी बाहर खेलते बच्चों का उधम, तो कभी वो जरूरी काम जो आप नाजने किस नक्षत्र मे निपटान भूल गए थे, कभी समय ना होगा एक भी पन्ने की झलक देखने के लिए और अगर समय होगा तो वो सुकून भरा एकांत नहीं जहां कोई शोर-शराबा ना पहुंचता हो और अगर एकांत मिल भी जाए तो वो खिड़की नहीं होगी जहां से छन के आने वाली रोशनी पढ़ने का मजा दोगुना कर  देती हो पर आप इन सब से इतर पूरा ध्यान बस इस किताब मे लगाए रखते है। ऐसे नाजुकता से पकड़ते है की पन्ने पर कोई मैल ना लग जाए, बड़े करीने से जिल्द चढ़ाई जाती है कि कहीं कोई परत ना उधड़ जाए और सबसे जरूरी, छुपा के रखी जाती है हर उस उत्सुक उम्मीदवार से जो शायद आपसे छीन के खुद पढ़ लें ये किताब।

इस किताब का हर पन्ना आपको, आपके ही किसी व्यक्तित्व से मिलाता है, किसी पन्ने पर वो सचकही होती है जो आपने अब तक मानी ना थी या यूं कहूँ की जानी ही नहीं थी, वही दूसरे पन्ने पर जुड़ जाता है कोई किरदार आपसे, किसी पन्ने पर खुश हो जाते है आप क्षण भर के लिए और किसी पन्ने पर मन नम हो जाता है दुख की बारिश से पर यकीन मानिए, पूरा पढ़ना व्यर्थ नहीं जाता है बस तैयार रहिए अपने आपको थोड़ा सा बदला हुआ पाने के लिए और बेशक आप पढ़ने से पहले भी अधूरे नहीं थे पर अधूरी पढ़ी किताब छोड़ देती है आपको अधूरा सा, हमेशा के लिए।

अलविदा, क्यूकीं वक्त हो चला है मेरी दराज़ में रखी ऐसी ही एक किताब को पढ़ने का।

तुम्हारी मुंतज़िर।

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